उस बासी रोटी
का पहला ग्रास
ज्यों ही मैने
मुँह मे डाला
था
चिल्लाकर मालिक ने
मेरे
चित्र - गूगल आभार |
तत्क्षण मुझको बुलवाया था/
कहा टोकरी भरी पड़ी
है
और गाड़ी आने वाली
है
लगता है ये
भीड़ देखकर
आज अच्छी बिक्री होने
वाली है/
करता है मन
मेरा भी
खेलूँ मैं यारों
के संग
पर है ये
एक जटिल समस्या
'ग़रीबी' लड़ता जिससे मैं
ये जंग/
पर है यकीन
मुझको की
बापू जब भी
आएँगे
दोनो हाथों मे दुनिया
की
खुशियाँ समेटे लाएँगे/
पर आज बरस
बीते कई
ये सपने पाले
हुए
बापू यहाँ होते
तो देखते
मेरे पैर-हाँथ काले हुए/
बापू कमाने परदेस गये
माँ मुझसे बोला करती
थी
पर जाने क्यूँ
रात को वो
छुप-छुप रोया
करती थी/
माँ,क्यूँ रोती है,बापू यहाँ
नहीं तो क्या
मैं भी तो
घर का मर्द
हूँ
जब तक वो
आते हैं तब-तक
मैं तुझे कमाकर
देता हूँ/
अरे! नहीं पगले
कहकर
वो और फफककर
रोती थी
सिने से मुझको
लगाकर
वो लोरी गाया
करती थी/
अब आ चुकी
गाड़ी यहाँ
अब मैं चढ़ने
जाता हूँ
इन समोसों को बेचकर
दो-चार पैसे
कमाता हूँ/
समोसा बेचने के खातिर
मैने हर डिब्बे
पर चिल्लाया था
की तभी हुई
अनहोनी ये ज़रा
मैं एक औरत
से टकराया था/
बस ज़रा सा
लग जाने पर
ही
वो मुझपर झल्लाई थी
पर फ़र्क नहीं पड़ता
मुझको
ये तो मेरे
हर दिन की
कमाई थी/
पर होना
था कुछ और
सही
जो आँख
मेरी फड़फड़ाई थी
मेरे गालों
पर पढ़ने वाली
वो उस
औरत की कठोर
कलाई थी/
पर क्या करता
मैं लोगों
ने कहा आगे बढ़ जाने को
और कुछ नहीं
था मेरे हाथो
बस इन आंशूओ
को पोंछ पाने
को/
दो कदम
चल कर मैने
अगले डिब्बे
पर कदम जमाया
था
क्या? इस बच्चे
के आंशू मोती
नहीं
केवल उसका
साया था/
पर व्यर्थ समय नहीं
मुझको
माँ को क्या
जवाब दूँगा
इससे अच्छा है की
मैं
दो-चार पैसे
कमा लूँगा/
©युगेश
©युगेश