Monday, September 18, 2017

अब उम्र होने लगी है

आने लगी है उम्र की निशानियाँ धीरे-धीरे
खूबसूरती के पैमाने बदलते जा रहे धीरे-धीरे
कल तक सिर्फ पोशाक को जाँचती निगाहें
अब सिर्फ ख़यालात और संस्कार देखने लगी है
क्या सच में अब उम्र होने लगी है?

चित्र- गूगल आभार 
आम के पेड़ों पर मंजरों का मंजर
छोटे छोटे टिकोले देखो लगते कितने सुंदर
आज पत्थर मारने से क्यूँ कतराने लगी हैं
आज क्यूँ पके आमों की बाट जोहने लगी है
क्या सच में अब उम्र होने लगी है?

शोर-शराबा पसन्द था मुझे
अठखेलियाँ करना अधिकार था मेरा
शैतानियाँ!शायद ही किसी को छोड़ा
पर आज क्यूँ अपनी बच्ची को टोकने लगी है
क्या सच में उम्र होने लगी है?

रोष समझदारी में,और गुस्सा धैर्य में बदल गया
इक्षाएँ दबीं,मैंने विचारों में बल दिया
बड़ी जल्दी दोस्ती हो जाती थी लोगों से कभी
क्यूँ अपनी औकात फिर लोगों को टटोलने लगी हैं
क्या सच में अब उम्र होने लगी है?

चीज़ों को पसन्द करते हैं लोग
मैं लोगों को पसंद करती हूँ
उम्र के तवज़्ज़ो ने दिए हैं ये झुर्रियां
उसी तवज्जो के बिनाह ये सच्चे रिश्ते जोड़ने लगी है
हाँ,सच में अब उम्र होने लगी है।

आज जो मैं थक गई थी
बेटी ने प्यार से कहा छोड़ दो तुम
माँ,मैं हूँ न कर देती हूँ
पता है वो बड़ी होने लगी है
और मैं खुश हूँ,अब उम्र होने लगी है।
©युगेश
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चर्चे तेरे ही होंगे,ये कोई और नहीं

इश्क़ ऐसा हुआ कि मैं खो गया
लोगों ने ढूँढा पर मिला नहीं
चित्र- गूगल आभार 
इश्क़ की चाशनी को तेरे लबों से उठाया
मिठास ऐसी की अब तक घुला नहीं
तूने नाक पर नथुनी को सजा ऐसे दिया
चाँद को खुले आसमान में जैसे देखा नहीं
ये जो आँखों के तले जो काजल तूने लगाया
अँधेरे में ऐसा डूबा की उठा नहीं
तेरी चूड़ियों की खनक से एहसास यूँ हो आया
कि इस शहर को शोर चाइए खामोशी नहीं
छोड़ दो कुछ माँगना खुदा से,न करो वक़्त जाया
हम तो इसी में लगे हैं,क्या इस से वाकिफ नहीं
ये जो सुगबुगाहट है शहर में,ये कौन आया
चर्चे तेरे ही होंगे,ये कोई और नहीं
©युगेश
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Saturday, September 9, 2017

मेरी आँखें पढ़ माँ बोल देती है

लाख गुजर जाए उस पर,पर वो छोड़ देती है
मैं कितना भी छुपाऊँ,मेरी आँखें पढ़ माँ बोल देती है।
चित्र-गूगल आभार
उसकी सिसकियों को लोग उसकी कमज़ोरी समझते हैं
वो तोड़ती है खुदको,पर मुझे जोड़ देती है।
तुमने तिनके उठाते तो देखा होगा चिड़ियाँ को
माँ वो है जो तिनकों से घर को जोड़ देती है।
मेरे जरा सी मेहनत पर मुझे गुरुर सा आ गया
वो तो रोज़ करती है,हँसकर छोड़ देती है।
कोई अच्छा कहेगा,कोई बुरा कहेगा,फिक्र नहीं
मैं क्या हूँ,नज़रें टटोल माँ बोल देती है।
बचपना उसमें भी होगा जरूर कहीं
जाने क्यूँ मुझ पर वो सब उड़ेल देती है।
ज़िद तो उसमें भी होगी शायद,मैं जो रुकने कहूँ
वो मानती नहीं,पहला निवाला मुँह में छोड़ जाती है।
मैंने करवटे बदले हैं घंटों मलमल के बिस्तरों पर
गोद पर सिर रखूँ,और वो एक थपकी,नींद आ ही जाती है।
आज मैं जो कुछ भी हूँ,उसी की रेहम है
सब खुदा की ख्वाईश है,जाने क्यूँ माँ बोल देती है।
©युगेश
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