Saturday, December 16, 2017

पापा!मैं विदा लेना चाहती हूँ।

बेटी जो रुखसत हुई
तो ये बादल भी गरजने लगे
पिता ने कहा बेटी अभी तो जाती है
इन आँशुओं को थोड़ा ठिठके रहने दे
ये जो अंसुवन की माला है
कभी घुटनों पर पड़ती थी
आज जो सीने पर पड़ी
तब यकीन आया
बेटी अब बड़ी हो चली
मैं भी जो रो दूँ
तो बच्ची को कौन सँभालेगा
चित्र-गूगल आभार 
थोड़ी देर और आँसू
मेरी आँखों में रह लेगा
मुझसे जो वो गले लगती है
मैं चुप हो जाने को कहता हूँ
वो एक एक कर सभी से मिलती है
शायद मुझे थोड़ा रूखा समझती है
आँसू शायद सभी ने बहाया था
एक शायद मैं ही था
जो उन्हें आँखों में समेट पाया था
दायित्व थे कुछ,मजबूर नहीं था
वो बस बेटी नहीं थी मेरा
वो मेरा गुरुर था
मैं हीरो था उसका
सो कमजोर कहाँ हो सकता था
और वो विदा हो चली
अब अश्रुजल चल पड़े थे
मैं एकांत कमरे में था
एक सख्त पिता की कमजोरी
आँसूओं का रूप ले चली थी
कि एक हाँथ मेरे कन्धे पर था
मैंने झट से आँसू पोंछे
पीछे मेरी गुड़िया खड़ी थी
कहा-गुड़िया अब बड़ी हो चली
आपकी कठोरता का पूरा आभास है मुझे
मैं भी आपको थोड़ा समझने लगी
सो ठिठक गयी थी
जो मेरे आँसू पोछते आये थे आप मेरे
आज आपके पोंछना चाहती हूँ
पापा!मैं आप सी होना चाहती हूँ
पापा!मैं विदा लेना चाहती हूँ।
©युगेश
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