Sunday, December 23, 2018

शनाख़्त मोहब्बत की

शनाख़्त नहीं हुई मोहब्बत की हमारी
जज़्बात थे,सीने में सैलाब था
पर गवाह एक भी नहीं
लोगों ने जाना भी,बातें भी की
पर समझ कोई न सका
समझता भी कैसे
अनजान तो हम भी थे
चित्र - गूगल आभार 
एक हलचल सी होती थी
जब भी वो गुज़रती थी
आहिस्ता आहिस्ता
साँसें चलती थी
एक अलग सी दुनिया थी
जो मैं महसूस करता था
मेरी दुनिया में उसके आने के बाद
आज जो कठघरे में खड़ा था
सबूत दफ्न थे मेरे जिगर में
सियासत उसी की थी
काज़ी भी वही
फिर फैसला मेरा कहाँ था
एक समुद्र मंथन मेरे सीने में भी हुआ
फर्क बस ये था मैंने दोनो छोर
उसी के हाँथों में दे दिए थे
अब आब-ए-हयात निकले या ज़हराब
अब सब जायज था
सब कबूल था।
©युगेश
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एक कविता मेरे नाम

बात तब की है
जब मैं धरती पर अवतरित हुआ
चौकिए मत
चित्र - गूगल आभार 
हमारा नाम ही ऐसा रखा गया
युगेश अर्थात युग का ईश्वर
अब family ने रख दी
हमने seriously ले ली
खुद को बाल कृष्ण समझ बैठे
खूब मस्ती की
पर गोवर्धन उठा नहीं पाए
पर पिताजी ने बेंत बराबर उठा ली
और कृष्ण को कंस समझ
गज़ब धोया
मतलब सीधा-साधा धोखा
नाम युगेश रख दिया
इज्जत जरा भी नहीं की
फिर हमने कहीं पढ़ा
नाम में क्या रखा है
इस बात ने और पिताजी की डाँट ने
हमारा concept ठीक कर दिया
तब से हम धरती पर
साधारण मनुष्य की तरह
विचरण कर रहे हैं।
©युगेश

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Saturday, November 24, 2018

आ भी जाओ कि शाम होने को है

आ भी जाओ कि शाम होने को है
दिल कहता है अंजाम होने को है
मेरे होठों से जो छलकेंगे जाम तेरे नाम
कह देना अपने होठों को
चित्र - गूगल आभार 
एक पैगाम आने को है
आ भी जाओ कि शाम होने को है।

तमाशबीन ये दरीचे सारे,बंद होने को हैं
उड़ चले परिंदे घर की ओर
आसमाँ भी कुछ खोने को है
सन्नाटा जो पसरा है,चली आओ
कि जो दिल है वो धड़कने को है
आ भी जाओ कि शाम होने को है।

जुगनू जो आएँ हैं बड़ी तलब लेकर
तुझ 'कंदील' से रोशनी चुराने को है
वाबस्तगी हवाओं से तेरी भी क्या खूब है
ठहर जाती है,तू आएगी,खबर आने को है
बस!अब और न तड़पाओ
कि आ भी जाओ कि शाम होने को है।
©युगेश
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Tuesday, November 6, 2018

दिवाली,पटाखे और कोर्ट

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का फरमान आया कि दिल्ली में पटाखे केवल दिवाली के दिन 8-10 बजे तक जलेंगे।ऐसे में दिन-दुनिया से अनजान एक अबोध बालक ने ताबड़-तोड़ बम फोड़े।इस कृत्य से दिल्ली के प्रदूषण का पारा जितना न चढ़ा उस से ज्यादा पड़ोसी का चढ़ गया और हो गयी complaint।अब बच्चे तो भोले हैं तो उनकी क्या भूल तो पुलिस पिता को पकड़ ले गयी।रिहाई तो करवा ली लेकिन अब सदमें में हैं दफ़्तर जाएँ,दिवाली मनाएँ या बच्चे को समझाएँ।वैसे ऐसे ही परिस्थितियों में पड़ोसी की पहचान होती है।ऐसे में पटाखे मौसम को देख कर नहीं पड़ोसी देख कर फोड़े।
शुभ दिपावली :)


*दिवाली,पटाखे और कोर्ट*
मुख़्तसर फ़साना कुछ यूँ हुआ
पटाखे छोड़े मुन्ना ने
गिरफ्तार मुन्ने का बाप हुआ
जी हाँ,घटना यह शत-प्रतिशत सत्य है
पड़ोसी ने लिखाई जो रपट है
अब मुन्ना सुप्रीम कोर्ट के
दिशा-निर्देश से अनजान था
बस 8 से 10 तक दिवाली में पटाखे छूटेंगे
चित्र-गूगल आभार
ऐसा कोर्ट का फरमान था
इन बातों से मुन्ने को क्या सरोकार था
गली में फैला पटाखों का बाज़ार था
मुन्ने ने पटाखे लिए दो-चार
गली में कर दी आतिशबाज़ी जोरदार
इतने में पड़ोसी भड़क गया
दिवाली की सफाई का गुस्सा
बच्चे पर फुट गया
बोला तेरे बाप की गली है
यहाँ पटाखे फोड़ता है
बच्चा जाट था सो फुट पड़ा
बोला बाप पर जाता है
रुक मुन्ना दो-चार बम और ले आता है
न मुन्ने को खबर हुई न बाप को
खबर पहुँची चौकी के सरदार को
पापा दफ़्तर से बड़े खुशी से 
बस्ता समेट रहे थे
साथ में मिठाई पड़ी थी
द्रूतगति से पहुँची पुलिस की गाड़ी भी
उनके इंतज़ार में ही खड़ी थी
धनतेरस में धातु की कुछ वस्तु तो न ली
बेटे की कृपा से धातु की हथकड़ी जरूर मिली
पत्नी से पूछा अपना ही बच्चा है
अर्धांगिनीजी ने हामी भरी
दिवाली के पूरे खर्च वो जोड़ आए
उसी रकम से दण्ड भर खुद को छुड़ा पाए
बोले मुन्ना से बेटा अब से हम 
बिल्कुल green दिवाली मनाएँगे
और अखबार तो बेटा हम आज से ही
तुम्हें जरूर पढ़ाएँगे।
©युगेश
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Thursday, September 20, 2018

सैनिक की अर्थी (भाग २)

सुना है सुबह तक
मैं अपने गाँव पहुँच जाऊँगा
चित्र - गूगल आभार














































मैं जिस क्षितिज का सूरज था
चित्र - गूगल आभार 
कल अस्त भी वहीं हो जाऊँगा
सुबह 5 बजे मैं गाँव पहुँचा
लोगों को देख ऐसा लगा
मानो गाँव सोया ही नहीं था
उस भीड़ में हर चेहरे को
मैं पहचानता था
मुझे वो चाचा भी दिखे
जिनकी दुकान से मैं बचपन में
टॉफियाँ चुराया करता था
और हर बार वो मुझे पकड़ लेते थे
आज उन्होंने अपने आंसू
चुराने की कोशिश की
पर आज मैंने उन्हें पकड़ लिया
बोलने को बहुत कुछ है मेरे पास
मेरे वो दोस्त भी खड़े हैं
जिनके साथ मैंने घूमने की
कितनी ही योजनाएँ बनाई थी
जो कभी पूरी न हो सकीं
इसलिए शायद वो साथ घूम रहे थे
कि मेरी आखरी यात्रा में ही सही
वो इच्छा भी पूरी हो जाए
मैं हर उस गली से घूमा
एक एक मिट्टी का कण
मुझे पहचान रहा था
और मैं उन्हें
मैं घर से दूर जरूर था
पर जुदा कभी नहीं
अचानक हवा का झोंका
मुझ पर पड़े तिरंगे को छूता चला गया
मानो पूछना चाह रहा हो
फिर कब आना होगा
मैं जवाब सोच भी न पाया था
कि दूर रुदन की आवाज़ आयी
बिल्कुल जानी पहचानी सी
दूर दो बिम्ब दिखे
वो मेरी पत्नी और माँ थी
दोनों को देख मेरा हृदय चीत्कार गया
ऐसी असह्य पीड़ा मुझे कभी नहीं हुई
वो मेरे मृत शरीर को अनावृत कर
ऐसे लिपटी मानो एक छोटा बच्चा
अपने खिलौने को जोर से पकड़ कर
अपने पास रखने का
निरर्थक प्रयास करता रहता है
आज एक और छोटे बच्चे ने
अपने माँ के आँचल को जोड़ से पकड़ा था
मुझे अब अंत्येष्टि चाहिए थी
उस गोली ने मुझे जितना
क्षत-विक्षत नहीं किया था
उस से कहीं ज्यादा इस दृश्य ने
मेरी आत्मा को किया था
कि तभी खुद को संभालते हुए
उस गर्वीली योषिता ने कहा
अपने पिता की तरह बनोगे
बच्चे ने तुतलाते हुए कहा हाँ
उसके अस्पष्ट शब्द मुझे
स्पष्ट निर्देश दे गए
कि अब मैं सो सकता था
एक बहुत लंबी नींद
चैन से,अभिमान से।
©युगेश

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सैनिक की अर्थी (भाग १)

मैं एक सैनिक हूँ


चित्र - गूगल आभार 







वही,जिसकी पहचान
उसकी वर्दी से होती है
और हम मरते नहीं
हम शहीद होते हैं
मैं भी कल ही शहीद हुआ
मुझे इस बात का गुरुर है
कि भारत माँ के लिए जो कुछ
कर सकता था मैंने किया
अफ़सोस बस ये है
कि मेरी वो माँ........
मेरा गला रुँध जाता है
वो औरत कितनी मज़बूत है
मैंने सुना है कि
मेरे शहीद पिता को देखकर
उसने बड़ी हिम्मत से
अपने रंगीन लिबास को निकाल कर
सादा लिबास ओढ़ लिया था
वो टूटी थी पर बिखरी नहीं
ताकि मैं ना बिखर जाऊँ
पर अब इतना आसान न होगा
कि वो मज़बूत औरत
अपनी बहू के लिबास को सादा कर दे
सुना है घर में खबर जा चुकी है
पर पत्नी को बस इतना पता है







चित्र - गूगल आभार 
कि मुझे थोड़ी चोट लगी है
पर मैं वापस आ रहा हूँ
चोट लगना हमारे लिए बड़ी बात नहीं
वो बस खुश है
एक सुकून सा है चेहरे पर
कि घर के छोटे सिपाही को
अब झूठा दिलासा नहीं देना होगा
पर अब तक वह झूठ
एक नितांत सत्य बन चुका है
और मुझे तिरंगे में लपेटा जा रहा है
सुना है देश में अब हर किसी को
तिरंगे से लपेट रहे हैं
अच्छी बात है
इस से तिरंगे की इज्जत कम नहीं होती
हाँ,पर हमारी जरूर होती है
पर इतना सोचने का वक़्त कहाँ है
मेरी अंतिम यात्रा उन्हीं गलियों से गुज़रेगी
जहाँ मैंने चलना भागना सिखा था
मेरी पहली और अंतिम यात्रा उसी पथ पर
फर्क बस ये होगा
पहले माँ पीछे भागती थी
अब एक हुज़ूम पीछे होगा..........
©युगेश

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Thursday, August 30, 2018

मंज़िल मिली किनारा न मिला

मंज़िल मिली किनारा न मिला
मिला साथ लोगों का तुम्हारा न मिला
चित्र - गूगल आभार 
दरख़्त से गिरे पत्ते की तरह
जो उड़ना चाहा हवाओं का सहारा न मिला
जुम्बिश वस्ल की तुम क्या जानो
जब चाहा तब न मिला
जब न चाहा तब जा कर मिला
राह चला जो तुमने दिखाई
कभी ठोकर खा कर चला
कभी ठुकरा कर चला
मंसूब करूँ अपनी तरक्की तेरे नाम
जो भी गम दिए तूने
सारे के सारे,जज़्ब कर चला
आई जो मंज़िल पास मेरे
पीछे मुड़ तुझे देखकर चला
रंजिश न रह जाए कोई
इसलिए यारों जो मैं चला
दुआ सलाम करता चला।
©युगेश

मंज़िल मिली किनारा न मिला(YOUTUBE LINK)
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Saturday, August 4, 2018

HAPPY FRIENDSHIP DAY

Somehow we met
Somehow we became friends
We may not be jai-veeru
But we sure have set trends
So you remember the drinks
Oh please don't spill the beans
You know it's facebook 
And for my mother 
I am still a teen
photo courtsey:google images
U have my secrets
I remember your sins
You don't have to worry
Together we always came clean
Some I met in childhood
Some in the college days
And some sudden and outright
Oh these coincidences make life
Remember the good old days 
Remember the pain
Reconciliation after the fight
We sure belong to same clan
Life has been a roller coaster ride
Thanks for being always by my side
Things have changed, we grew up
and drifted away
Job,study whatever the reason you say
It's my life but you will always have a say
Do keep disturbing keeping all the ego at bay
Remember whenever we meet we will say yay
Till then HAPPY FRIENDSHIP DAY :D
©Yugesh
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Monday, July 23, 2018

दिल के किराएदार

बकौल मोहब्बत वो मुझसे पूछता है
दिल के मकान के उस कमरे में
क्या?अब भी कोई रहता है।
थोड़ा समय लगेगा,ध्यान से सुनना
बड़ी शिद्दत से बना था वो कमरा
कच्चा था पर उतना ही सच्चा था
उसे भी मालूम था कि उसकी
एक एक ईंट जोड़ने में मेरी
चित्र - गूगल आभार 
एक एक धड़कन निकली थी
इकरारनामा तो था
पर उस पर उसके दस्तख़त न हो पाए
उसे कोई दूसरा कमरा पसंद था
मेरा कमरा थोड़ा कच्चा था
सो अब सीलन पड़ने लगी थी
थोड़ी दरारें भी आ गईं थी
लोगों के कहने पर थोड़ी
मरम्मत करवाई है
सीलन और दरारें थोड़ी भरने लगी हैं
अब मैं वो कमरा किराये पर लगाता हूँ
किरायेदार भी अच्छे मिल जाते हैं
पर किसी में ऐसी बात नहीं मिली
कि कमरे को मकान से जोड़ दे
दरारे कम हो गई हैं
पर अब भी कुछ बाकी हैं
हाँ, मैंने इकरारनामे की कुछ शर्तें
बदल जरूर दी हैं
किराया ठीक ठाक मिल जाता है
तकलीफ अब उतनी नहीं होती।
©युगेश

https://youtu.be/M2LG7xv2y7g
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Thursday, July 12, 2018

जब मेरी बच्ची रोती है

आँखें मूँद इंसानियत जाने कहाँ सोती है
चित्र - गूगल आभार 
जीते जी मर जाता हूँ मैं जब मेरी बच्ची रोती है|
क्या कुछ नहीं बीता नाज़ुक सी उस जान पर
माँस के इस ढांचे में अब कहाँ वही बच्ची होती है।
छलनी-छलनी हो जाता जिगर मेरा,जब जिगर के टुकड़े से
कहाँ छुआ,कैसे हुआ ये तफ्तीश होती है।
कमाल है समाज,मुझे सोच पर तरस आता है
जुर्म करता है कोई और चेहरा मेरी बच्ची ढकती है।
हुजूम सा आया है सड़कों पर खबर है मुझे
अफ़सोस!ये सबकुछ हो जाने के बाद होती है।
हाल किसी ने न जाना,बस कौम पूछते रह गए
सियासत है जनाब,अफ़सोस ऐसी ही होती है।
गुरुर अब भी उतना हीं है,मुझे अपनी बच्ची पर
आदमी ही हूँ,कौम जिसकी बस एक पिता की होती है।
©युगेश

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Thursday, June 21, 2018

इच्छाएँ मन मझधार रहीं

इच्छाएँ मन मझधार रहीं
न इस पार रहीं न उस पार रहीं
उम्र बढ़ी जो ज़हमत में
नादानी हमसे लाचार रहीं
कुछ पाया और कुछ खोया
गिनती सारी बेकार रही
जेब टटोला तो भरे पाए
चित्र - गूगल आभार 
बस घड़ियाँ भागम-भाग रहीं
कदम बढ़े जो आगे तो
नज़रें पीछे क्यूँ ताक रहीं
एक गुल्लक यादों का छोड़ा था
स्मृतियाँ हाहाकार रहीं
वापस लौटा,गलियाँ घूमा
सब जाने क्यूँ चीत्कार रहीं
उस बूढ़े बरगद चाचा से
अब कहाँ वही पहचान रही
कहते लज्जत वही मिठाई की है
पर कहाँ वही चटकार रही
दरीचा जिसे देख दिल ये धड़का था
अब धड़कन कहाँ बस आवाज़ रही
चलते चलते जो उस ठौर रुका
देखा इमारत शायद वही रही
माँ ने खोला दरवाज़ा तो घर पाया
पग दौड़े,आँखें नीर से भरी रही
देखा तो पाया बस थी यहीं ठहरी
वो खुशियाँ जो बेहिसाब रहीं।
©युगेश
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Tuesday, May 29, 2018

धीरे धीरे जो सुलगी

धीरे धीरे जो सुलगी वो आग हो गई
 चित्र - गूगल आभार 
हमने लिखने को जो उठाई कलम
वो आज किताब हो गयी
उनके जुल्फों की खुशबू में हम यूँ बहके
की जो अब तक न चढ़ी आज शराब हो गई।
आज आबशार जो देखा मैंने नदी के किनारे
उनकी जुल्फों से रिस कर रुकसार पर आते हुए
जुस्तजू का आलम ये हुआ
की खुदा से आज बगावत हो गयी
क्या कहूँ बस तब से उनकी इबादत हो गई।
कई बार उनकी मुस्कराहट के बारे में सोचा
जब भी सोचा चेहरे पर मुस्कान आ गयी
तारीफ़ करना हमने सीखा नहीं
दीदार-e-पाक क्या हुआ पन्नो पर स्याही आ गयी
वाह-वाही अपने ग़ज़लों की हमने पहले न सुनी
जिक्र जो उनका हुआ
अल्फ़ाज़ों में ताकत करिश्माई आ गयी।
©युगेश
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Sunday, May 20, 2018

सवाल कुछ यूँ भी हैं जिंदगानी में

सवाल कुछ यूँ भी हैं जिंदगानी में
कि अश्क हैं भी और गिरते भी नहीं।
चित्र-गूगल आभार 
शरीर टूटता है उन कामगार बच्चों का
एक आत्मा थी जो टूटी है पर टूटती भी नहीं।
उस बच्ची का पुराना खिलौना
आज मैंने कचरा चुनने वाली बच्ची के पास देखा
पता है खिलौना टूटा है,पर इतना टूटा भी नहीं।
ठगे जाते हैं लोग अक्सर सत्ता-धारियों से
बौखलाहट है,पर शायद उतनी भी नहीं।
बड़ा आसान देखा है मैंने आरोप लगाना
कमिया कुछ मुझमें भी होंगी,गलती बस उसी की नहीं।
पिता को मैंने हमेशा थोड़ा कठोर सा देखा है
कभी जो अंदर झाँक के देखा,शायद इतने भी नहीं।
गुबार है गर दिल में तो निकल जाने दो
दर्द जो होगा तो एक बार होगा,पर उतना भी नहीं।
किसी की कामयाबी देखकर घबरा न जाना
जुनून को सुकून चाहिए,पर उतना भी नहीं।
भला जरूर करना लोगों का,बस खुश करने की कोशिश नहीं
दोस्त जरूर चाहिए सबको,पर उतने भी नहीं।
फकत दिल का रोना भी कोई रोना है यारों
गम और भी हैं ज़िंदगानी में,कम्बख्त बस यही तो नहीं।
©युगेश
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Tuesday, May 8, 2018

अहं

धृतराष्ट्र आँखों से अंधा
पुत्र दुर्योधन अहं से अंधा था
उसकी नज़रों से देखा केशव ने
चित्र- गूगल आभार 
चारों ओर मैं ही मैं था।

जब भीम बड़े बलशाली से
बूढ़े वानर की पूँछ न उठ पाई
बड़ी सरलता से प्रभु ने
अहं को राह तब दिखलाई।

जैसे सुख और माया में
धूमिल होती एक रेखा है
वैसे मनुज और मंज़िल के बीच
मैंने अहं को आते देखा है।

जितनी जल्दी ये ज़िद छुटे
अहंकार का कार्य रहे,अहं छुटे
मनुज को भान स्वयं का होता है
सूर्य वही उदय तब होता है।
©युगेश

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Thursday, April 19, 2018

सिसकी

सिसकी जो निकली तो जान निकल गयी
हैरत तो तब हुई जब बच्ची बच्ची नहीं
हिन्दू और मुसलमान निकल गयी
कठुआ हो या उन्नाव
या कोई और जगह
माँ को तकलीफ तब हुई
जब बच्ची घर से परेशान निकल गयी
कहीं दुबक के बैठी थी वेदना
वेदना का चोला ओढ़े जब
राजनीति बेशुमार निकल गयी
निर्भया के आँसू अभी सूखे नहीं थे
इंसानियत बेसुध पड़ी रही मंदिर में
हैवानियत उससे होकर सरेआम निकल गयी
©युगेश
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Saturday, April 7, 2018

Black buck और भाई

Black buck को धराशायी कर
फिल्हाल भाईजान धराशायी हो गए
कुछ खुश हो गए
तो भाई के fans रूष्ट हो गए
आखिर भाई ने इतनों का भला किया
चित्र- गूगल आभार 
हिरण की आत्मा ने पुकार लगाई
तो साले मैंने किसका बुरा किया
सुना 20 साल हो गए
अब तो उसके पुनर्जन्म की बात होगी
अरे!आपने फिल्में नहीं देखी
उसे इंसाफ मिला नहीं
आत्मा उसकी जरूर भटकती होगी
कुछ बाबाओं से पता चला
वही जो जेलों में बंद हैं
अंदर हैं तो क्या
अभी भी उनमें काफी दम है
कि आत्मा हिरण की
आजकल जोधपुर जेल के चक्कर काटती है
डरी सहमी सी है
पता चला आगे अपील भी हो सकती है
और लाकर रखा कहाँ जोधपुर
रिहा होकर आ गए तो
अपना घर तो बगल में ही है
अरे यही राजस्थान
निकल लिए gun लेकर
और गन-गना दिए तब
इससे पहले वो पधारे मारे देश
बिरादरी वालों को मैं बोल दूँ
निकल लो बेटा परदेस।
©युगेश

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Monday, March 26, 2018

भगत सिंह

आँखों में खून मेरे चढ़ आया था
शैलाब हृदय में आया था
जब लाशों के चीथड़ों में
जलियावाला बाग़ उजड़ा पाया था।
जब चीख उठी बेबस धरती
सौ कूख लिए हर एक अर्थी
बचपन में बचपना छोड़ आया
मैं इंक़लाब घर ले आया।
बाप-चाचा थे गजब अनूठे
निज घर देशभक्ति अंकुर फूटे
बचपन में ही छोड़ क्रीड़ा
मैं निकला किरपान उठा।
चित्र-गूगल आभार 
अपनों में तलवार जब छूटेगा
सरदार कहाँ चुप बैठेगा
तिल-तिल मरती भारत माता
नास्तिक से और न कोई पूजा जाता।
रक्तपात मुझे कुछ प्रिय न था
शमशीर उठाऊँगा ये निर्दिष्ट न था
जब असहयोग से सहयोग छूटेगा
अहिंसा पर कभी विश्वास तो टूटेगा।
दुनिया ये बिल्कुल नीरस है
आज़ादी से बड़ा क्या परम-सुख है
वो कहते मुझसे शादी को
मैं ब्याह चुका आज़ादी को।
जब एक बूढ़े पर लाठियाँ चल उठी
पता चला अहिंसा तब रूठी
आँखों में अंगार लिए
मैं चला भीषण हाहाकार लिए।
ये हृदय अग्नि तब शिथिल होगी
Scott की छाती में मेरी गोली होगी
एहसास हो जाए फिरंगी को
वक़्त नहीं लगता इमारत ढहने को।
जब निरीह का निर्मम शोषण होता
जब चारों ओर क्रन्दन होता
और हिंसा से जब आँख खुले
धर्म वही सबसे पहले।
आखिर मुझको एहसास हुआ
भगत एक कितना खास हुआ
जब हर गली भगत गर घूमेंगे
अंग्रेज़ भाग देश को छोड़ेंगे।
मन में न था कोई संशय
लाना था मुझको एक प्रलय
संसद में बम जब फूटेगा
आवाज़ देश में गूँजेगा।
जैसे बादल के छंटने पर
सूरज बस तेज़ दमकता है
वैसे बम के धुएँ के हटने पर
इंक़लाब का शोर गरजता है।
जानता था परिणाम क्या होगा
ऐसी मृत्यु से गुमनाम न होगा
जब भगत शहीद कहलायेगा
क्या लोगों में उबाल न आएगा।
अब देख भंवर क्या आएगा
मृत्यु क्या मुझको देहलाएगा
सतलज में फेंका मेरा एक एक टुकड़ा
बनकर निकलेगा एक एक शोला।
भारत माँ से बस ये विनती होगी
कि रंगा रहे मेरा ये बासन्ती चोला।
©युगेश
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Saturday, February 17, 2018

कर्ण

रोष मस्तक पर जब रंजीत होता
विश्वास जो छल से खंडित होता
अनल सा तपता जब ये मन
धिक्कारा जाए जब कुन्दन।
जब सूरज का कोप प्रखर होता
जब तोड़ तुझे कोई तर होता
न प्यास बुझाये उस पानी को
कानों को चुभती हर एक वाणी को।
शूरवीरों से वो भरी सभा
चित्र -गूगल आभार 
मछली की आँख न कोई भेद सका
चढ़ा प्रत्यंचा गाण्डीव पर
लक्ष्य चले भेदने उसके कर।
बढ़ गयी सभा की उत्कंठा
बढ़ गयी द्रौपदी की चिन्ता
शर्त स्वयंबर का फिर बदल गया
कर्ण जीत,जाती से तब हार गया।
पूछा मुझसे हस्ती मेरी क्या है
राजकुमारी चाइए,पर राज्य तुम्हारा क्या है
दुर्योधन में मैंने,तब एक मित्र पाया था
वो मेरे हित अंगेश मुकुट तब लाया था।
कहते मुझसे लोग यहाँ
मैंने तो अधर्म का साथ दिया है
लेकिन मुझको बतलाये
इस दानवीर को तब किसने दान दिया है।
धर्म की बातें करने वाले
तब आँख मूंद क्यूँ लेते हैं
कर्ण के अमूल्य कवच और कुण्डल
इंद्र धोखे से माँग जब लेते हैं।
माता के मातृत्व में
मैंने तब जाकर छल पाया
जब अपने बेटों के प्राण माँगने
पहली बार मुझमें पुत्र नजर आया।
धर्म-अधर्म की बातें मुझको
बेईमानी सी लगती है
सबकी अपनी गणना है
थोड़ी मक्कारी सी लगती है।
धर्म कहता है मेरा
मैं निर्णय विचार कर लूँगा
लेकिन जिसने साथ दिया
उस मित्र को विश्वासघात न दूँगा।
इतिहास लिखे जो भी मुझपर
मुझे कोई रोष नहीं है
ये सुत-पूत जो रोए
इतने आँसू शेष नहीं हैं।
जीवन रणक्षेत्र है जिसका
कुरुक्षेत्र बस एक खण्ड है
विचलित न हुआ विपदाओं से
ज्ञात रहे,वो दानवीर कर्ण है।
©युगेश
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